अनवर चौहान

लगता है कि अमित शाह की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। समाजवादी कुनबे में चली लंबी लड़ाई के बाद और बसपा में टूट की कलह माने जाने लगा था कि  भाजपा यूपी में मोर्चा मार लेगी। मगर अब इसका ठीक उलटा नज़र आ रहा है। अब भाजपा की कलह साफ खुलके सामने आने लगी है। लगता है अमित शाह की डिकटेटरशिप ने सारे समीकरण बिगाड़ दिए हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के सूपड़ा साफ नतीजों से मिथ बना था कि प्रधानमंत्री मोदी जो सोचते हैं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह उसे कर दिखाते हैं  लेकिन भाजपा की सारी पुरानी बीमारियां अचानक उभर आई हैं.

सबसे बड़ा सूबा यूपी प्रधानमंत्री के दाहिने हाथ के लिए खतरे की घंटी बजाने लगा है. इसे कहीं बाहर नहीं, खुद भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  (आरएसएस) के भीतर सुना जा सकता है.यूपी विधानसभा चुनाव के टिकट बांटने का एकाधिकार चुनाव समिति की दो बैठकों के बाद अमित शाह को दिया गया था. टिकट ऐसे बंटे कि पार्टी में उनकी धमक ही खत्म हो गई. नाराज कार्यकर्ता का गुस्सा सड़कों पर दिखने लगा।

प्रधानमंत्री के चुनाव क्षेत्र बनारस में लगातार सात बार के विधायक श्यामदेव रायचौधरी "दादा" का टिकट कटने के बाद से प्रदर्शन हो रहे हैं. मनमाने टिकट बंटवारे को लेकर आरएसएस के यूपी में 6 सक्रिय  प्रचारकों ने नाराजगी का इज़हार कर दिया है. यह पहला मौका है जब पार्टी कार्यकर्ता इतनी तादाद में टिकट बंटवारे के ख़िलाफ़ नेताओं की गाड़ियों के आगे लेटकर रास्ता रोक रहे हैं, अमित शाह समेत प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य और प्रदेश प्रभारी ओम माथुर के पुतले फूंके जा रहे हैं.

दलबदलुओं और पार्टी के बड़े नेताओं के बेटे-बेटियों को टिकट देना मुद्दा बन रहा है. भाजपा में जातिवादी रंग की गुटबाजी पुरानी है जिसके सूत्रधार एक बात पर एकमत हैं कि स्थानीय नेताओं की नहीं सुनने वाले अमित शाह का हद से अधिक दखल बंद होना चाहिए.  भाजपा के पास कोई ऐसा दमदार नेता नहीं था जिसे भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया जा सके। लिहाजा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और प्रधानमंत्री  मोदी के चेहरे ही आमने-सामने हैं. इस स्थिति का फ़ायदा उठाते हुए सांसद, गोरखनाथ पीठ के महंत आदित्यनाथ की हिंदू युवा वाहिनी ने "देश में मोदी यूपी में योगी" के नारे के साथ पार्टी के मुखालफत में उम्मीदवार उतर आए हैं.

2017 का यूपी का चुनाव अजित सिंह और उनकी पार्टी के लिए बेहद अहम है. जाट पूरी तरह से भाजपा के खिलाफ है। जो कभी भाजपा का बड़ा मज़बूत वोट बैंक था। उधर आदित्यनाथ खुद मुख्यमंत्री पद की दावेदारी करने से झेंप रहे हैं लेकिन पक्का है कि उनकी नाराजगी पूर्वांचल में भाजपा का खेल बिगाड़ेगी. अगर भाजपा के पास कोई मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरा होता तो नाकामी का ठीकरा उसके सिर फूटता लेकिन अब नतीजों के जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ अमित शाह होंगे.

पहले पार्टी ने पाकिस्तान के अंदर घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी के जरिए कालेधन के खात्मे को मुद्दा बनाया था लेकिन अब दोनों एजेंडे  से ग़ायब हो रहे हैं. सभाओं में भाजपा नेता जब नोटबंदी के फ़ायदों का जिक्र करते हैं तब चुप्पी छाई रहती है.इसके बजाय अब पुराने आजमाए नुस्खे यानी धार्मिक ध्रुवीकरण पर ज़ोर है. मुज़फ्फ़रनगर के कैराना से हिंदुओं के तथाकथित पलायन और भाजपा की सरकार बनने पर माफिया मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद और आज़म ख़ान को जेल भेजने को मुद्दा बनाया #2332;ा रहा है. जो भाजपा की सफलता के लिए काफी नहीं है।
भाजपा ने इस बार एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया है और इससे भी हैरत की बात यह है कि धार्मिक ध्रुवीकरण के बयानों पर मुसलमानों की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हो रही है.भाजपा पांच साल से अखिलेश यादव की सरकार द्वारा छात्रों को लैपटॉप बांटने को दिल बहलाने वाला झुनझुना बता रही थी.लेकिन मुद्दों के बेअसर होने के कारण लैपटॉप और फ्री डेटा बांटना भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में सबसे ऊपर आ गया है. इसे समाजवादी पार्टी की नकल के रूप में देखा जा रहा है.

चुनाव में सामने प्रधानमंत्री मोदी की तीन साल पुरानी सरकार है इसलिए सपा-कांग्रेस और बसपा दोनों भाजपा के नए वायदों को जवाब में उन वायदों की याद दिला रहे हैं जो पिछले लोकसभा चुनाव के समय किए गए थे.इनमें सबसे ऊपर कालाधन और हर वोटर के खाते में पंद्रह लाख देने का मसला सबसे ऊपर है जिसे अमित शाह पहले ही जुमला बताकर पार्टी के भीतर पर्याप्त आलोचना पा चुके हैं.