हमेशा मां के लिए शायरी लिखने वाले मुनव्वर राना ने मंदिर-मस्जिद प्रकरण पर खुलकर बात रखी। बताया कि आस्था के फैसले अदालतों में नहीं होते। मुल्क साम्प्रदायिकता के गड्ढे में जाने लगा है, यह खतरनाक स्थिति है। उन्होंने उर्दू जुबान की बदहाली पर कहा कि जब कोई भाषा हुकूमत की मदद का इंतजार करने लगे तो उसका अंजाम भी वही होता है, जो सरकारी अस्पताल में गरीब मरीज का होता है।

जब पुरस्कार वापसी की होड़ मची थी, तब मुनव्वर राना भी अवार्ड वापसी करने वालों में शामिल थे। उनके  अवार्ड वापसी करने से भूचाल सा आ गया था। वह देश के हालातों से नाराज थे। फिर वह प्रधानमंत्री मोदी  से मिलने क्यों गए थे। यह सवाल उस वक्त बहुतों के मन में था। पर उसका जवाब मुनव्वर राना ने शाहजहांपुर में आकर दिया। उन्होंने कहा कि अवार्ड वापस करने के बाद वह इसलिए मोदी से मिलने गए,  क्योंकि वह मोदी की मोहब्बत के कर्जदार थे। मुनव्वर राना बोले-अवार्ड वापस करना मेरे गुस्से का इजहार था, लेकिन मेरी मां के इंतकाल पर पीएम मोदी ने अपने हाथ से लिखकर सांत्वना खत भेजा था। उनकी इस मोहब्बत का कर्जदार बन गया हूं मैं और यही  सोचकर उनसे मुलाकात के लिए गया। उन्होंने कहा, इस वक्त मुल्क में रोज नए सियासी तमाशे हो रहे हैं। कोई न कोई मुद्दा शुरू हो जाता है। इसका मतलब सामाजिक मसला नहीं है, बल्कि मुसलमान सियासत के शिकार होते जा रहे हैं। हम अपने समाज की तहजीब से बाहर निकलने की कोशिश में आपस में भाईचारा खत्म करने के काम में लग गए हैं। वर्तमान में  सबसे ज्यादा मुसलमानों को मुसलमानों से खतरा है।


जब पुरस्कार वापसी की होड़ मची थी, तब मुनव्वर राना भी अवार्ड वापसी करने वालों में शामिल थे। उनके अवार्ड वापसी करने से भूचाल सा आ गया था। वह देश के हालातों से नाराज थे। फिर वह प्रधानमंत्री मोदी से मिलने क्यों गए थे। यह सवाल उस वक्त बहुतों के मन में था। पर उसका जवाब मुनव्वर राना ने शाहजहांपुर में आकर दिया। उन्होंने कहा कि अवार्ड वापस करने के बाद वह इसलिए मोदी से मिलने गए,  क्योंकि वह मोदी की मोहब्बत के कर्जदार थे। मुनव्वर राना बोले-अवार्ड वापस करना मेरे गुस्से का इजहार था, लेकिन मेरी मां के इंतकाल पर पीएम मोदी ने अपने हाथ से लिखकर सांत्वना खत भेजा था। उनकी इस मोहब्बत का कर्जदार बन गया हूं मैं और यही  सोचकर उनसे मुलाकात के लिए गया।

उन्होंने कहा, इस वक्त मुल्क में रोज नए सियासी तमाशे हो रहे हैं। कोई न कोई मुद्दा शुरू हो जाता है। इसका मतलब सामाजिक मसला नहीं है, बल्कि मुसलमान सियासत के शिकार होते जा रहे हैं। हम अपने समाज की तहजीब से बाहर निकलने की कोशिश में आपस में भाईचारा खत्म करने के काम में लग गए हैं। वर्तमान में  सबसे ज्यादा मुसलमानों को मुसलमानों से खतरा है।