
अनवर चौहान
राष्ट्रवाद की लहर का उल्टा असर: ऑपरेशन सिंदूर ने राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा दिया है, जिसे बीजेपी ने तिरंगा यात्रा जैसे कार्यक्रमों के जरिए भुनाने की कोशिश की है। इससे बीजेपी को जन समर्थन मिलने की संभावना बढ़ी है, खासकर उन राज्यों में जहां 2024 के लोकसभा चुनाव में उसे नुकसान हुआ था। कांग्रेस, जो विपक्ष में है, को इस लहर के सामने अपनी स्थिति कमजोर होती दिख रही है, क्योंकि जनता का ध्यान राष्ट्रीय सुरक्षा की ओर ज्यादा केंद्रित हो गया है।
आंतरिक मतभेद उजागर होना: ऑपरेशन सिंदूर को लेकर कांग्रेस के भीतर मतभेद सामने आए हैं। शशि थरूर जैसे नेताओं ने जहां इसकी तारीफ की, वहीं पवन खेड़ा और कोथुर मंजुनाथ जैसे नेताओं ने इसे दिखावा बताकर सवाल उठाए। इस तरह की असहमति से पार्टी की एकजुटता पर सवाल उठे हैं, जिससे उसकी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा है।
विपक्षी रणनीति पर असर: कांग्रेस ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद बीजेपी पर सियासी फायदा लेने का आरोप लगाया, लेकिन उसकी अपनी रणनीति प्रभावी नहीं दिखी। सीजफायर और पहलगाम हमले के मुद्दों को उठाने की कोशिश की गई, लेकिन जनता के बीच राष्ट्रवाद का मुद्दा हावी होने से कांग्रेस के अन्य मुद्दे जैसे जातिवार जनगणना पीछे छूट गए। इससे उसकी चुनावी रणनीति कमजोर पड़ सकती है।
सेना और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर कमजोर छवि: कांग्रेस ने ऑपरेशन सिंदूर का समर्थन तो किया, लेकिन उसकी आलोचना करने वाले बयानों ने उसे सेना और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर कमजोर दिखाया। बीजेपी ने इसे भुनाते हुए कांग्रेस पर सेना का अपमान करने का आरोप लगाया, जिससे उसकी छवि को नुकसान पहुंचा।
चुनावी नुकसान की आशंका: राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, जैसे बालाकोट स्ट्राइक ने 2019 में बीजेपी को फायदा पहुंचाया, वैसे ही ऑपरेशन सिंदूर भी आगामी विधानसभा चुनावों में बीजेपी को लाभ दे सकता है। कांग्रेस को डर है कि यह राष्ट्रवादी लहर उसकी चुनावी संभावनाओं को नुकसान पहुंचा सकती है, खासकर उन राज्यों में जहां वह सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही है।
हालांकि, कांग्रेस ने इस स्थिति का जवाब देने के लिए नई रणनीति बनाई है, जिसमें बीजेपी पर तथ्यात्मक हमले और सेना के शौर्य का सम्मान बनाए रखने की कोशिश शामिल है। फिर भी, ऑपरेशन सिंदूर ने सियासी माहौल को इस तरह बदला है कि कांग्रेस को अपनी स्थिति मजबूत करने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।