(अनवर चौहान) मुंबई/नई दिल्ली. याक़ूब मेनन के वकील ने साफ कहा ,,सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही नहीं है... कोर्ट ने बहुत बड़ी भूल की है,, किसी शायर ने कहा है कि लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई है।...एक बात मैं यहां साफ कर दूं कि याक़ूब सूली पर लटकाने के लिए राजनीती-करण हुआ है। ये बात मैं नहीं कह रहा....ये आरोप मेनन के भाई....मेनन की पत्नी...मेनन की बेटी  कह रही है। सच और झूठ का फैसला करने के लिए ये बहस का मुद्दा है। मैं बहस में जाना नहीं चाहता। राज्यपाल और राष्ट्रपति ने उसकी दया याचिकाओं को पलभर में ख़ारिज कर डाला। ये सवालिया निशान ज़रूर है। सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच में याक़ूब पर कोई फैसला नहीं हुआ। यानि कोई एक जज मेनन के पक्ष में था.... यानि एक जज ने स्पष्ठ कर दिया की मेनन पर अभी फांसी का जुर्म नहीं बनता। तभी मामला तीन सदस्य वाली बैंच में पहुंचा। ये दूसरा सवालिया निशान है। दोनों सवालों को मद्देनज़र रख कर जब आप देखेंगे तो पाऐंगे इतिहास में ऐसी कोई नज़ीर नहीं।  मोदी सरकार पूरी तरह से एक तरफा खड़ी दिखी.....उसका फैसला एक तरफा दिखा। यदि आप सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे जवाब नहीं सवालों में से सवाल निकलते दिखेंगे। इस देश का बुद्धि-जीवी वर्ग ये साफ कह चुका है कि मोदी ने हिंदुत्व के नाम पर चुनाव लड़ा और इसी के कारण वो प्रधानमंत्री बने.....इस वोट बैंक को सजोए रखने के लिए मोदी ने सत्ता की लंबी पारी खेलने की योजना को अंजाम दिया है। सवालों में सवाल एक और निकलता है.....प्रक्टिकल दिशा की ओर चलते हैं....याक़बूल मेनन का वकील भले ही साफ कहे सुप्रीम कोर्ट ने बहुत  बड़ी भूल की या फिर राजनैतिक दबाव में फैसला सुनाया।  मगर मैं सुप्रीम कोर्ट और सरकारके फैसले को जायज़ क़रार देता हूं। सवाल फिर सामने ख़ड़ा है....जिसका ढिड़ोरा भी खूब पीटा जा रहा है कि हमने मैनन को फांसी देकर उन 257 लोगों के साथ इंसाफ किया है जो मुंबई बम कांड में मारे गए। अब एक और नया सवाल.....257 लोगों को तो इंसाफ मिल गया मगर गुजरात में जो हज़ारों परिवार जिनके ज़ख़्म अभी हरे हैं उनको  को इंसाफ कौन सी अदालत और कौन सी सरकार देगी। मलियाना, भागलपुर, मुरादाबाद, सूरत, दिल्ली के सिख परिवार वालों ने सीने में जो ज़ख़्म दफन किए हैं उनका क्या होगा....इन परिवारों वालों की आखों के आंसू सूख गए......हज़ारों लोग पंचतत्व में लीन हो गए और हज़ारों सुपर्दे ख़ाक हो गए....मगर इनके लिए किसी का इंसाफ नहीं आया। इनके ज़ख्म उन 257 लोगों से कहीं ज़्यादा गहरे थे। एक और सवाल....क्या याक़ूब को फांसी देने का मक़सद आतंकियों को संदेश देना या आतंकियों भयभीत करना मक़सद था....यदि ऐसा तो मैं इसे मूर्खता कहुंगा। 90 फीसदी आतंकी हथेली पर जान लेकर चलता है। वो मरने की बाद की ज़िंदगी पर भरोसा रखता है। उसका ब्रेन पूरी तरह साफ कर दिया जाता है... कि जिहाद करते हुए मरना.....सीधा जन्नती है....वो कामयाब और नाकामयाबी की परवाह नहीं करता....उसे सिर्फ मरने के बाद जन्नत दिखाई देती है। इसी लिए वो सुसाइड-बम भी बन जाता है। अब तक का इतिहास उठाकर देख लीजिए, जो भी आतंकी हमला करने आए वो पूरी तरह से ये मन बनाकर आए की उनको मरना है। उन्हें मौत से ज़्यादा जन्नतप्यारी है।1993 मुंबई सीरियल ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार सुबह जिरह करने वाले वकील  आनंद ग्रोवर का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट से बड़ी भूल हुई है। उन्होंने कहा, ``यह सही फैसला नहीं है। मैं बहुत निराश और नाखुश हूं। सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी भूल की है। अगर हम चाहते हैं कि आतंकवाद घटे तो कुछ कदम उठाने होंगे।`` बता दें कि याकूब को फांसी की सजा से  बचाने के लिए देर रात चीफ जस्टिस के यहां सीनियर वकीलों की टीम पहुंची थी। इस टीम में आनंद ग्रोवर के अलावा प्रशांत भूषण, युग मोहित, नित्या रामाकृष्णा समेत 12 टॉप वकील थे। पैसों के लिए नहीं लड़ा केस, दिए तीखे सवालों के जवाब सुप्रीम कोर्ट द्वारा याकूब की फांसी पर स्टे याचिका को खारिज करने के बाद आनंद ग्रोवर पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रहे थे। इस दौरान उन्हें कुछ तीखे सवालों का भी जवाब देना पड़ा। एक ने पूछा  कि वह याकूब के लिए इतनी रात को क्यों कोर्ट आए, इस पर आनंद ने कहा कि पैसों के लिए नहीं आया। एक पत्रकार ने पूछा कि उन्होंने एक आतंकवादी को बचाने की कोशिश क्यों की, इस पर आनंद  ने कहा कि उनका मानना है कि एक व्यक्ति को संविधान के तहत मिले सारे अधिकारों का इस्तेमाल करने की आजादी होनी चाहिए। एक पत्रकार ने पूछा कि क्या वे किसी गरीब के लिए  इसी तरह देर रात कोर्ट पहुंचेंगे, इस पर आनंद ने कहा कि लोगों को नहीं पता कि वे इससे पहले किस-किस के लिए केस लड़ चुके हैं। वे ऐसा पब्लिसिटी के लिए नहीं कर रहे। कौन हैं आनंद ग्रोवर आनंद ग्रोवर सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील हैं। वे होमोसेक्शुअलिटी और एचआईवी से जुड़े मामलों को कोर्ट में उठाने के लिए जाने जाते हैं। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने आनंद ग्रोवर को सीबीआई और ईडी को रिप्रेजेंट करने के लिए पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नियुक्त किया था।