भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 से 7 सितंबर तक म्यांमार दौरे पर थे. मीडिया हलकों में इस दौरे की आलोचना हो रही है.  ख़ासकर भारतीय अख़बारों में. पाकिस्तान और बांग्लादेश के अख़बारों ने इस दौरे का विशेष जिक्र नहीं किया है. हालांकि कुछ अख़बारों में मोदी और आंग सान सू ची की आलोचना ज़रूर की गई है. रोहिंग्या मुसलमानों के दुश्मन हैं बर्मा के ये `बिन लादेन` म्यांमार के पश्चिमी प्रांत रखाइन में रोहिंग्या मुस्लिमों के ख़िलाफ़ चल रही हिंसा और वहां बढ़ती भारतीय राजनीतिक दिलचस्पी की वजह से प्रधानमंत्री की यह यात्रा बेहद चर्चा में थी.भारत "एक्ट ईस्ट" नीति के तहत म्यांमार के साथ आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने में दिलचस्पी दिखा रहा है.

ऐसा वो चीन के ख़िलाफ़ भागीदार जुटाने की कोशिश के तहत कर रहा है. हालांकि चीन और म्यांमार के बीच दीर्घकालिक रिश्ते रहे हैं और चीन वहां भारी निवेश कर रहा है. लेकिन भारतीय अख़बारों में मोदी की इसलिए आलोचना हो रही है क्योंकि वो इस दौरान रोहिंग्या मसले पर कुछ नहीं बोले. भारतीय अख़बारों ने मानवाधिकारों को बनाए रखने में विफलता के लिए नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू ची की आलोचना भी की है.
`वे औरतों के जिस्म के हिस्से काट रहे थे`
जान बचाकर म्यांमार से हिंदू भी भाग रहे
रोहिंग्या पर नज़रिया स्पष्ट करे भारत
टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक "सू ची मानवाधिकारों की रक्षा के लिए चुनिंदा नहीं हो सकतीं."

इसमें मोदी की भी आलोचना की गई है. इसमें लिखा गया है कि "उन्हें म्यांमार नेतृत्व के सामने रोहिंग्या मुस्लिमों की नागरिकता की ज़रूरत पर जोर देना चाहिए था." अख़बार ने लिखा, "भारत को रोहिंग्या शरणार्थियों की वापसी के अपने आदेश रद्द कर देने चाहिए." एक अन्य अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स ने भी कुछ ऐसा ही लिखा.अख़बार ने संपादकीय में लिखा, "भारत ने म्यांमार के अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे भयावह व्यवहार के मुद्दे को दरकिनार कर दिया."

हालांकि दोनों ही अख़बारों में लिखा गया कि भारत ऐसा कुछ नहीं करना चाहता था जो म्यांमार को चीन के और करीब ले जाए. कुछ अख़बार भारत से आग्रह करते हैं कि रोहिंग्या मुसलमानों और चरमपंथी गुटों में अंतर को स्पष्ट करें. मौजूदा रोहिंग्या संकट पर पहली बार बोलीं सू ची `रोहिंग्या मुसलमानों के 700 से अधिक घर जलाकर तबाह किए` एशियन एज ने लिखा है कि अराकान रोहिंग्या रक्षा सेना तो अभी हाल ही में बनाई गयी है और किसी भी समुदाय के सभी सदस्यों को सुरक्षा के लिए ख़तरा बताना अनुचित है."

इसमें लिखा गया कि भारत को चौकस रहना चाहिए और यह सुनिश्चित भी करना चाहिए कि यह भेद किया जाए. इसमें इस बात पर अफसोस जताया गया कि मोदी की यात्रा से "धारणा निकलती है कि भारत भी सभी रोहिंग्या को संभावित सुरक्षा ख़तरे के रूप में देखता है." अन्य अख़बारों की तुलना में अंग्रेजी दैनिक द ट्रिब्यून में मोदी के दौरे की अधिक कठोर आलोचना है. अख़बार ने अपने संपादकीय में लिखा है, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विक राजनेता बनने की आकांक्षाएं दिखती हैं, वो रोहिंग्या मसले पर नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित आंग सान सू ची की बहानेबाज़ियों का साथ देते नज़र आते हैं."

इसमें आगे लिखा गया, "कुछ ही हफ़्तों पहले शुरू हुए इस मसले को चरमपंथी समस्या बता कर म्यांमार सरकार झूठ बोल रही है... जब ये कहती है कि उनके वहां रहने से आतंकी समस्या पैदा होगी." क्या मुसलमानों को रहमदिली की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए! नज़रिया: `जो फ़िट नहीं होते उन्हें राष्ट्रद्रोही कहा जा रहा` हालांकि बांग्लादेश और पाकिस्तान के अख़बारों में मोदी के म्यांमार दौरे पर कम ही कवरेज़ देखने को मिला, लेकिन जिन अख़बारों ने इस विषय को लिया है उसने इन दोनों नेताओं की आलोचना की है. बांग्लादेश का द डेली स्टार न्यूज़पेपर लिखता है, "सू ची के रोहिंग्या मुस्लिमों के उत्पीड़न को फ़र्जी ख़बर और इस मसले पर मोदी के एकतरफा मत से हमें झटका लगा है."

इसमें आगे लिखा गया, "द्विपक्षीय और पारस्परिक हितों के बावजूद ऐसी एकतरफा स्थिति उस देश के लिए अशोभनीय है जो पूरी दुनिया का नेतृत्व करने का प्रयास कर रहा है." आख़िर कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान राष्ट्रवाद की सरकारी परिभाषा रूढ़िवादी है? रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार से भागकर बांग्लादेश में क्यों शरण ले रहे हैं? पाकिस्तान में भी मोदी की आलोचना पाकिस्तानी अख़बार द पाकिस्तान ऑब्जर्वर ने लिखा, "पूरा विश्व म्यांमार के रखाइन प्रांत से रोहिंग्या मुसलमानों के पलायन को तुरंत रोकने के लिए दबाव बना रहा है, लेकिन आश्चर्य है कि खुद को सबसे बड़ा प्रजातंत्र बताने वाला भारत म्यांमार का साथ देते हुए उस पर से दबाव कम कर रहा है." इसमें आगे लिखा गया, "भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रोहिंग्या मुसलमानों के अधिकारों को रौंदे जाते वक्त म्यांमार का दौरा किया जबकि कोई अन्य नेता यहां इस समय नहीं जाना चाहेगा क्योंकि इससे म्यांमार प्रशासन की इस दमनकारी नीति को ही बल मिलेगा."

व्यंग्य: `हिंदी डिक्शनरी नहीं, हिंदू शब्दकोश भी चाहिए`

नज़रिया: फिर भी मुसलमानों के ख़िलाफ़ शक़ और नफ़रत क्यों?

अख़बार ने लिखा, "रखाइन प्रांत के विषय में मोदी की टिप्पणी से उनकी (म्यांमार की) इसी नीति का समर्थन हो रहा है, विशेष रूप से सुरक्षा बलों के ख़िलाफ़ हो रही हिंसा का. मोदी की ये टिपप्णी मुस्लिमों के ख़िलाफ़ ज़हर से भरे बोल थे."

अख़बार ने मोदी पर अपने कड़े शब्दों को जारी रखते हुए उन पर भारत प्रशासित कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप भी मढ़ा. उसने चेतावनी दी, "म्यांमार के नीति निर्माता ये समझ लें कि अगर मोदी कश्मीर में विफल रहे हैं तो वो रखाइन को भी क्रूर ताकतों की मदद से नहीं जीत सकेंगे."

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