इंद्र वशिष्ठ
आईपीएस अफसरों जागो, खाकी को ख़ाक में मत मिलाओ, पुलिस की साख दांव पर मत लगाओ। खाकी वर्दी पर आंच आए तो सबक सिखाना ज़रूरी है। आईपीएस अगर ईमानदार हो तो ईमानदार नजर आना ज़रूरी है। सत्ता के लठैत बन अपने निजी स्वार्थ के लिए पुलिस बल का मनोबल मत गिराओ। पुलिस का मनोबल गिरेगा तो दिल्ली में जंगल राज हो जाएगा। गुंडे और छुटभैये नेता पुलिस वालों को दौड़ा दौड़ा कर मारेंगे।
फिल्मों में नेताओं और गुंडों द्वारा पुलिस अफसर की बेइज्जती या पिटाई के दृश्य दिखाए जाते हैं लेकिन यह दृश्य हकीकत में दिल्ली में दिखाई देगा यह कोई सोच भी नहीं सकता था। सत्ता के नशे में चूर एक गवैये/नौटंकीबाज ने दिल्ली पुलिस के एक डीसीपी को गिरेबान से पकड़ कर साबित कर दिया कि आईपीएस अफसर की भी हैसियत उसकी नज़र में सत्ता के लठैत/गुलाम से ज्यादा कुछ भी नहीं है।
हालांकि फिल्म में तो हीरो पुलिस अफसर ऐसे नेताओं को जबरदस्त सबक सिखाता है लेकिन हकीकत में हुई इस घटना में आईपीएस डीसीपी ने वर्दी का अपमान करने वाले नेता को सबक सिखाना तो दूर उसके खिलाफ मुकदमा तक दर्ज करने  की हिम्मत नहीं दिखाई। इस मामले से नेताओं के गिरते स्तर और कमजोर पुलिस कमिश्नर की असलियत उजागर हुई है। दूसरे राज्यों में पुलिस के बड़े-बड़े अफसरों के साथ बदतमीजी के मामले सामने आते रहे हैं लेकिन देश की राजधानी में एक आईपीएस अफसर के साथ इस तरह की हरकत खतरनाक हैरान परेशान करने वाली हैं।
इस मामले ने पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक और आईपीएस एसोसिएशन की  भूमिका पर भी सवालिया निशान लगा दिया है।
 सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन के मौके पर पुलिस द्वारा रोके जाने से तिलमिलाए  दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष सांसद मनोज तिवारी द्वारा उत्तर पूर्वी जिले के डीसीपी अतुल ठाकुर की गिरेबान पकड़ने का दृश्य मीडिया के माध्यम से सबने देखा लेकिन पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक आंख मूंदकर बैठे हैं। पुलिस कमिश्नर अगर
काबिल होते तो डीसीपी की गिरेबान में हाथ डालने, हाथापाई करने वाले मनोज तिवारी और उसके साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उसे हवालात में डाल कर कानून का राज स्थापित करते हैं। लेकिन अमूल्य पटनायक ने ऐसा कुछ नहीं किया। दूसरी ओर खुद सक्षम होते हुए डीसीपी अतुल ठाकुर ने भी इस मामले में मनोज तिवारी के खिलाफ कार्रवाई ना करके अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया। ऐसा करके इन अफसरों ने खाकी वर्दी को शर्मिंदा किया है।इससे पता चलता है कि पुलिस सिर्फ कमजोर आदमी  या विपक्षी दलों के खिलाफ ही कार्रवाई कर सकती हैं। कोई भी ईमानदार और स्वाभिमानी आईपीएस अफसर होता तो वर्दी का अपमान करने वाले  सांसद को गिरफ्तार कर अपने कर्तव्य पालन की मिसाल कायम करता। जो जिला पुलिस उपायुक्त अपने साथ हुए अपराध के मामले में ही कार्रवाई नहीं करता है वह भला अपने मातहतों और समाज के सामने क्या आदर्श पेश करेगा ? ऐसे अफसरों के कारण ही नेता ऐसी हरकत करने का दुस्साहस करते हैं। ऐसे पुलिस अफसर भूल जाते हैं कि उनके ईमानदारी से कर्तव्य पालन ना करने से ही मातहत पुलिस वालों का मनोबल गिरता है। वैसे यह वही डीसीपी अतुल ठाकुर है जो आपराधिक मामलों के आरोपी से चांदी का ताज पहन कर सम्मानित होने के कारण चर्चा में आए थे। आईपीएस अफसरों संभल जाओ जिन नेताओं के इशारे पर निजी लठैत की तरह व्यवहार करते हो उन नेताओं ने सरेआम तुम्हारी गिरेबान पर हाथ डाल कर दिखा दिया कि उनकी नज़र में अफसरों की भी क्या हैसियत है।
मुख्य सचिव से मुख्यमंत्री निवास में मारपीट के मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने वाली दिल्ली पुलिस को अब क्या सांप सूंघ गया। सरेआम आईपीएस अफसर की गिरेबान पर हाथ डालने वाले मनोज तिवारी के खिलाफ कार्रवाई न करने से साबित हो गया कि आईपीएस अफसर सत्ता के लठैत की तरह ही काम करते हैं। आईपीएस अफसरों में अगर जरा भी  स्वाभिमान  है तो खाकी वर्दी और कानून का सम्मान क़ायम करना चाहिए।  पुलिस बल का मनोबल गिराने के लिए नेताओं से ज्यादा ऐसे  आईपीएस अफसर ही जिम्मेदार होते हैं। मुख्य सचिव के  पक्ष में तो आईएएस एसोसिएशन , कांग्रेस और भाजपा भी खुल कर सामने आ गए थे लेकिन इस मामले में तो आईपीएस एसोसिएशन की भी बोलती बंद हैं। आईपीएस अफसरों को यह दिखाना चाहिए कि उनका मालिक सिर्फ संविधान और कानून हैं।

नेताओं की कृपा से महत्वपूर्ण पद पाने या अपने अन्य निजी स्वार्थ में आईपीएस अफसरों द्वारा इस मामले में कार्रवाई ना करने से पुलिस में निचले स्तर तक मनोबल गिरता है। कल को छुटभैये नेता भी  पुलिस वालों से बदतमीजी करने लगेंगे। जिससे कानून का राज और पुलिस का डर खत्म होने से शरीफ़ लोगों का जीना मुश्किल हो जाएगा।

बिना किसी राजनीतिक योगदान/ संघर्ष के सिर्फ गायन,अभिनय के कारण  भाजपा की कृपा से सत्ता में आए इस नेता की हरकत ने साबित कर दिया कि वह इस पद का  हकदार नहीं हैं। सत्ताधारी दल का ही सांसद होने के बावजूद जो पुलिस अफसर की गिरेबान पकड़ कर हमला करता है वह नेता लोगों के सामने क्या आदर्श पेश करेगा ? सत्ताधारी दल का सांसद ही जब कानून और वर्दी का सम्मान नहीं करता तो लोग भी वैसा ही करेंगे।
कांग्रेस, भाजपा हो या कोई अन्य दल प्रदर्शन के दौरान पुलिस के लाठीचार्ज के भी शिकार होते रहे हैं। पुलिस की ज्यादती पर पुलिस अफसर  हटाएं भी जाते हैं लेकिन किसी भी दल के प्रदेशाध्यक्ष स्तर के नेता ने कभी किसी डीसीपी को ऐसे गिरेबान से नहीं पकड़ा और ना ही ऐसे हमला किया होगा। इससे यह भी पता चलता है कि वरिष्ठता और योग्यता को दर किनार कर जब बिना किसी राजनीतिक योगदान के अनुभवहीन, कनिष्ठ,  बाहरी और दूसरे  कार्य क्षेत्र के व्यक्ति को अध्यक्ष जैसे पद पर थोपा जाता है तो ऐसा व्यक्ति ही  सत्ता के अहंकार में कानून और वर्दी का अपमान करने जैसी हरकतें करता है। वह ऐसी हरकत करते समय यह भी भूल जाता है कि जिस डीसीपी की गिरेबान में हाथ डाल रहा है वह उनकी ही  केंद्र सरकार के मातहत है। प्रधानमंत्री को वर्दी का अपमान कर कानून की धज्जियां उड़ाने वाले ऐसे नेता को सबक सिखाना चाहिए ताकि आगे से कोई ऐसी हरकत करने की हिम्मत ना करें।
इसके पहले मनोज तिवारी ने एक डेयरी पर लगाई गई सील तोड़ कर भी कानून की धज्जियां उड़ाई। इस मामले में भी पुलिस ने मनोज तिवारी के खिलाफ मामला तो दर्ज किया लेकिन उसे गिरफ्तार नहीं किया गया। जबकि कोई अन्य ऐसा करता तो पुलिस उसे गिरफ्तार भी करती। मनोज तिवारी की यह हरकत सिवाय नौटंकी के कुछ भी नहीं है क्योंकि अगर वह वाकई सीलिंग की समस्या से लोगों को निजात दिलाना चाहते हैं तो अपनी पार्टी से कह कर संसद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उसी तरह क्यों नहीं पलटवा देते जैसे एससी-एसटी एक्ट मामले में उनकी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटा है।

1994-95 की बात है कांग्रेस के दिग्गज मंत्री  जगदीश टाइटलर ने सरकारी जमीन पर कब्जा करने वालों की मदद करने के लिए उत्तर पश्चिमी जिला के तत्कालीन डीसीपी कर्नल सिंह से कहा। कर्नल सिंह ने ऐसा करने से इंकार कर दिया तो सत्ता के नशे में चूर  टाइटलर ने कर्नल सिंह से बदतमीजी से बात की। लेकिन कर्नल सिंह ने टाइटलर को ऐसी डांट लगाई कि वह जिंदगी भर नहीं भूलेगा। तिलमिलाए टाइटलर ने कर्नल सिंह की शिकायत करने के लिए सज्जन कुमार को पुलिस कमिश्नर निखिल कुमार के पास चलने के लिए कहा लेकिन सज्जन कुमार ने टाइटलर के साथ जाने से यह कह कर मना कर दिया कि बात तो कर्नल सिंह उसकी भी नहीं मानते लेकिन अफसर वह अच्छा है। कानून तोड़ने वाले और बदतमीजी करने वाले नेताओं से पुलिस अफसरों को इसी तरीके से निपटना चाहिए।
 
पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को सुस्त ही नहीं एक ऐसे पुलिस कमिश्नर के रूप में भी याद किया जाएगा जिनके समय में डीसीपी तक सुरक्षित नहीं है। अतुल ठाकुर पर तो सांसद मनोज तिवारी ने हमला कर दिया। इसके पहले उत्तर पश्चिमी जिला की महिला डीसीपी असलम खान के बारे में तो अमूल्य पटनायक के ही दफ्तर में तैनात हवलदार देवेंद्र ने ही फेसबुक पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी थी। डीसीपी असलम खान ने पुलिस कमिश्नर से शिकायत की थी लेकिन पुलिस कमिश्नर ने कोई कार्रवाई नहीं की। इस पत्रकार द्वारा यह मामला उजागर करने के बाद पुलिस कमिश्नर ने हवलदार को निलंबित किया।
आईपीएस अफसर भी गुलाम की तरह पुलिस का इस्तेमाल करते है।-- देश की राजधानी दिल्ली में ही पुलिस जब नेता के लठैत की तरह काम करती है तो बाकी देश के हाल का अंदाजा लगाया जा सकता है। 4-6-2011 को रामलीला मैदान में रामदेव को पकड़ने के लिए सोते हुए औरतों और बच्चों पर तत्कालीन पुलिस आयुक्त बृजेश कुमार गुप्ता और धर्मेंद्र कुमार के नेतृत्व में पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल कर फिरंगी राज को भी पीछे छोड़ दिया। उस समय ये अफसर भूल गए कि पेशेवर निष्ठा,काबलियत को ताक पर रख कर लठैत की तरह लोगों पर अत्याचार करने का खामियाजा भुगतना भी पड़ सकता है। इसी लिए प्रमुख दावेदार होने के बावजूद अन्य कारणों के साथ इस लठैती के कारण भी धर्मेंद्र कुमार का दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनने का सपना चूर चूर हो गया।

धर्म ना देखो अपराधी का -- रामलीला मैदान की बहादुर पुलिस को 21 जुलाई 2012 को सरकारी जमीन पर कब्जा करके मस्जिद बनाने की कोशिश करने वाले गुंड़ों ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। माहौल बिगाड़ने लिए जिम्मेदार बिल्डर नेता शोएब इकबाल के खिलाफ पुलिस ने पहले ही कोई कार्रवाई नहीं की थी। जिसका नतीजा यह हुआ कि गुंड़ों ने पुलिस को पीटा, पथराव और आगजनी की। लेकिन अफसरों ने यहां गुंड़ों पर भी  रामलीला मैदान जैसी मर्दानगी दिखाने का आदेश पुलिस को  नहीं दिया। इस तरह आईपीएस अफसर भी नेताओं के इशारे पर पुलिस का इस्तेमाल कहीं बेकसूरों को पीटने के लिए करते है तो कहीं गुंड़ों से भी पिटने देते है। अफसरों की इस तरह की हरकत से निचले स्तर के पुलिसवालों में रोष पैदा हो गया था।