(अनवर चौहान) दिल्ली. नोएडा के दादरी का बिसहाड़ा गांव में पी-पीट कर मार गिए गए अख़लाक़ के गांव वाले कह रहे हैं कि हमने 70 मुसलमानों के बचाया है। मानों उन्होंने ऐसा काम किया है कि उन्हें वीरता पुरुस्कार दिया जाना चाहिए। इन हराम ख़ोर लोगों को ये अहसास कतई नहीं है कि उन्होंने एक शख्स को मार कर कट्टरपंथी हिंदू होने का माथे पर ऐसा कलंक लगाया है जिसे पूरा गांव आसानी से धो नहीं सकता। अखलाक जिसे सोमवार को सैकड़ों लोगों की उन्मादी भीड़ ने  इसलिए मार डाला था, क्योंकि किसी ने अफवाह फैला दी थी कि उसके घर में बीफ है। चार दिन बाद भी गांव में किसी को नहीं पता कि ये सब कैसे हो गया?  क्यों हो गया? किसने किया? अटैक करने वाले गांव के थे या बाहर के? चारों ओर इस गांव की चर्चा है। यहां रहने वाले हिंदुओं ने कहा, ``हमने एक ऐसी मुस्लिम  फैमिली को बचाया जिसमें 70 मेंबर हैं।`` एक को बचाया नहीं गया 70 को बचाने की दलील दे रहें....हम मान भी लेते हैं कि 70 को बचाया...देश पर ये कोई एहसान नहीं कर दिया....बल्कि अपने फर्ज़ को निभाया है....सदियों से हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर इस मुल्क को आगे ले जाने का काम किया है। सियासत के लिए तो यह मुद्दा बन चुका है। गांव में दाखिल होते ही हर मोड़ पर या तो पुलिस नजर आती है, या सहमी-सी सवाल उठाती नजरें। आवाजाही है तो सिर्फ नेताओं और मीडिया की। 15 साल तक गांव के प्रधान रहे भागसिंह ने बताया कि गांव में कभी भी हिंदू-मुस्लिमों के बीच विवाद नहीं हुआ। मारपीट तो दूर की बात है। पता नहीं, ये सब कैसे हो गया? अखलाक के घर के सामने राजेंद्र सिंह का घर है। उन्होंने बताया, "अखलाक के छोटे भाई जान मोहम्मद की शादी मैंने ही कराई थी। उस रात हम दवा खाकर सो चुके थे। जब तक जागते, घटना हो चुकी थी।" गांव के ही जगदीश सिसौदिया कहते हैं कि हमने तो मुसलमानों को अपने घरों में रखा है। शब्बीर मेरे यहां रहता है। उसकी बेटियों की शादी करवाई। बेटों की फीस भरता हूं। मस्जिद टूटी तो गांव ने चंदा कर बनवाया। यहां के जितने भी मुस्लिम परिवार हैं, वे कल भी हमारे थे, आज भी हमारे हैं और हमेशा रहेंगे। हम किसी को सियासत नहीं करने देंगे। लेकिन सब इतना अच्छा ही था तो फिर अखलाक को मारने वाले कौन थे? किसी ने उन्हें रोका क्यों नहीं? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है। सिर्फ एक ही बात कहते हैं- ‘साहब रात हो गई थी, हम देख नहीं पाए। जब तक समझते लोग भाग चुके थे। हम तो सो रहे थे...।’ अखलाक के बड़े भाई जमीन अहमद को भी हत्यारों के बारे में कुछ नहीं पता। अखलाक की मां असगरी बेगम और बेटी शाइस्ता को नाम नहीं पता। इसलिए किसी को नामजद नहीं किया गया। गांव में कितने हैं मुस्लिम? गांव के प्रधान संजय राणा कहते हैं कि बिसहाड़ा में 15 हजार लोग रहते हैं। इनमें 361 मुस्लिम हैं। अखलाक और उनके पड़ोसी का घर गांव के बीच में है। घटना के बाद गांव के ही हिंदू परिवार अखलाक के परिवार को अपनी सरपरस्ती में मस्जिद तक लेकर गए थे। एसएमएस और वॉट्सऐप मैसेज की होगी निगरानी गृह मंत्रालय ने पुलिस से कहा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उससे लगते दिल्ली के सीमावर्ती इलाकों में एसएमएस और वॉट्सऐप संदेशों पर नजर रखी जाए। कुछ खास की-वर्ड वाले संदेशों को संवेदनशील बताया गया है। मसलन खास समुदाय का नाम, भाजपा-सपा-विहिप-बजरंग दल, एकत्रीकरण, जमा होने, सबक सिखाने, ललकारने, शक्ति दिखाने, बिसहाड़ा, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बागपत, धार्मिक स्थलों के नाम, पुजारी-इमाम जैसे शब्द मैसेज में होंगे तो उसकी खास निगरानी की जाएगी। मैसेज में कुछ भी संदेहास्पद होने पर संबंधित व्यक्तियों से पूछताछ की जा सकती है। कैसे हो रही है सियासत? शुक्रवार को पहले असदुद्दीन ओवैसी पहुंचे। उन्होंने कहा, "मांस नहीं, मजहब के नाम पर हमला हुआ है। फिर केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा पहुंचे। उन्होेंने कहा, "इखलाक की हत्या साजिश नहीं, हादसा थी।" पीड़ित परिवार ने एसडीएम पर राज्य सरकार का नाम न लेने के लिए धमकाने का आरोप लगाया। हमें सुकून से रहने दो "मैं और मेरे परिवार वालों को जो कहना था, तीन दिन में कह चुके हैं। मेरी बहन और मां की तबीयत ठीक नहीं है। भाई का इलाज चल रहा है। हम लोग टूट चुके हैं। हम गुजारिश करते हैं कि मेरे परिवार को सूकून से रहने दें।" -सरताज, अखलाक का दूसरा बेटा (वायुसेना में काम करते हैं) अफवाह फैलाने वाला पुजारी - कहां से आए, कहां गए, नहीं पता गांव के मंदिर के माइक से एलान कर भीड़ को उकसाने वाले पुजारी सुखीराम लापता हैं। तीन माह पहले मंदिर का कामकाज संभाला था। तब वे कहां से आए थे? किसने उन्हें मंदिर की जिम्मेदारी दी थी? इस बारे में किसी को कुछ पता नहीं। गुरुवार को पुलिस ने उनसे पूछताछ कर छोड़ दिया था।