इंद्र वशिष्ठ

दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक के दफ्तर में तैनात निरंकुश हवलदार ने  महिला डीसीपी के बारे में फेसबुक पर आपत्तिजनक टिप्पणी की है।
हवलदार ने अपने भ्रष्ट साथियों को बचाने के लिए अनुशासनहीनता की भी हद पार कर दी।
पुलिस मुख्यालय से जुड़े वरिष्ठ आईपीएस अफसर ने बताया कि माडल टाउन थाना इलाके में एक व्यक्ति बोरिंग करा रहा था। उसे थाने में बुला कर पुलिस ने पैसे मांगे। एस
 एच ओ के रीडर ने उसे फोन पर बात करने से भी  रोका।इस पर कहा सुनी /झगड़ा हो गया। उस व्यक्ति ने पुलिस वालों पर मारपीट करने का भी आरोप लगाया है। आरोप है कि पैसे मिलते नहीं देख एस एच ओ  सतीश ने उस  व्यक्ति को झूठे मामले में फंसाने की कोशिश की।
 उत्तर पश्चिमी  जिला की पुलिस उपायुक्त असलम खान की जानकारी में यह मामला आया। दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद उन्होंने मामले की जांच विजिलेंस को करने को कहा है।
डीसीपी के समय रहते सही कार्रवाई के कारण एस एच ओ उस व्यक्ति को झूठे मामले में फंसाने में सफल नहीं हो पाया।


साफ छवि की असलम खान बेईमान आईपीएस अफसरों  की भी अांख की किरकरी बनी हुई है। पुरूषवादी मानसिकता वाले बेईमान अफसरों ने तो पूरी कोशिश की थी कि  असलम खान को जिला पुलिस उपायुक्त का पद न मिले।
अब देखिए थाने वालों के सीपी दफ्तर में कनेक्शन।
इसके बाद देवेन्द्र सिंह नामक व्यक्ति ने फेसबुक पर अपने साथी माडल टाउन थाने पुलिस वालों को बचाने के लिए डीसीपी के खिलाफ ही आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी
इस पोस्ट पर अजय कुमार छोकर ने भी देवेंद्र के  कमेंट का समर्थन किया है।
छानबीन में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई कि देवेंद्र सिंह हवलदार है और पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक के कार्यालय में तैनात हैं अजय कुमार छोकर अपराध शाखा में तैनात हैं।
सबको मालूम है कि दिल्ली में बोरिंग से पुलिस को मोटी कमाई होती है।
पुलिस मुख्यालय से जुड़े  वरिष्ठ अफसर ने बताया कि माडल टाउन एसएचओ सतीश के  खिलाफ कार्रवाई के लिए डीसीपी असलम खान ने पुलिस मुख्यालय को पहले भी लिखा था लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई ।

पुलिस कमिश्नर कमजोर ,  हवलदार तक निरंकुश ।

ईमानदार आईपीएस अफसरों को इस मामले में एकजुट होकर कमिश्नर से एसएचओ समेत ऐसे पुलिस कर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करनी चाहिए। वर्ना एक दिन ऐसा आएगा कि भ्रष्ट पुलिस वाले इतने निरंकुश हो जाएंगे कि  उनके साथ खुलेआम भी बदतमीजी करेंगे।
अगर ऐसे पुलिस वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की गई तो कोई भी अच्छा अफसर काम नहीं कर पाएगा। ऐसे पुलिस वाले ही आम लोगों का भी  जीना हराम करते हैं।
पुलिस कमिश्नर के कार्यालय में किस तरह के लोग तैनात हैं इससे अंदाजा लगाया जा सकता है। कई पुलिसवाले तो कई सालों से वहां तैनात हैं।
इस हवलदार की हरकत ने तो साबित कर दिया कि पुलिस मुख्यालय में तैनात अफसरों के चहेते ऐसे पुलिस वाले कितने निरंकुश और दुस्साहसी हो गए हैं। पुलिस कमिश्नर के दफ्तर में तैनात होने के दम पर ऐसे पुलिस वालों की थानों  में सांठगांठ रहतीं हैं।
इसके लिए वह वरिष्ठ अफसर जिम्मेदार हैं जो इनको अपने निजी फायदे के लिए संरक्षण देते हैं इनका  तबादला भी नहीं होने देते।
आईपीएस अफसरों ने पुलिस के पीआरओ ब्रांच का भी बंटाधार कर दिया।
पुलिस के पीआरओ ब्रांच में भी सालों से जमे पुलिस वाले निरंकुश हो गए हैं। ऐसा ही एक इंस्पेक्टर संजीव है जो पुलिस की प्रेस रिलीज के साथ ब्रह्मा कुमारी नामक निजी संस्था की बेवसाइट का लिंक भेज कर संस्था का सालों से प्रचार कर रहा था इस पत्रकार द्वारा पिछले साल यह मामला उजागर किया गया था। इस तरह से पुलिस कमिश्नर की नाक के नीचे निजी संस्था के प्रचार के लिए पद और पुलिस के संसाधनों का इस्तेमाल किया जाता है। निरंकुशता का आलम यह है कि किसी भी पत्रकार का नाम बिना वजह पुलिस के व्हाटस ऐप ग्रुप या ईमेल लिस्ट से हटा दिया जाता है। हाल ही में पत्रकार फरहान के भी साथ ऐसा किया गया है। पीआरओ विभाग द्वारा
पुलिस और मीडिया के रिश्तों को बेहतर बनाने की बजाय बिगाड़ने का काम किया जा रहा है।
पुलिस में पेशेवर पीआरओ के न होने के कारण ही दीपेंद्र पाठक और मधुर वर्मा ने अपने चहेते पत्रकारों के लिए अलग व्हाटस ऐप ग्रुप बना कर मीडिया से भेदभाव किया है। कोई भी  काबिल और पेशेवर अफ़सर इस तरह  मीडिया को बांटने की हरकत नहीं करता है। ऐसे अफसरों के कारण ही पीआरओ ब्रांच में तैनात पुलिस वाले निरंकुश हो गए।
इंस्पेक्टर संजीव हो या हवलदार देवेंद्र  यह सब ऐसा दुस्साहस तभी कर पाते हैं जब अमूल्य पटनायक जैसे कमजोर पुलिस कमिश्नर होते हैं। पुलिस कमिश्नर  दमदार होता तो दीपेंद्र पाठक और मधुर वर्मा भी मीडिया से इस तरह भेदभाव करने की हिम्मत नहीं कर सकते थे।